Soyabean ki kheti खरीफ और रब्बी हंगाम में की जाती है। आमतौर पर इसका इस्तेमाल तेल निकालने के लिए होता है। क्योंकि सोयाबीन में अधिक मात्रा में पोषक तत्व होते हैं। प्रोटीन, कार्बोहाइड्रेट,वसा और नामी,भस्म की मात्रा पाई जाती है। सोयाबीन से नए-नए प्रोडक्ट भी बनाए जा रहे हैं। जैसे कि सोया मिल्क। सोया टोफु। सोया बड़ी। सोया सॉस। सोया ब्रेड ऐसे बहुत से प्रोडक्ट मार्केट में अवेलेबल है। भारत में मध्य प्रदेश राज्य में Soyabean ki kheti मुख्य रूप से की जाती है। इसके अलावा महाराष्ट्र, राजस्थान में भी इसकी खेती बड़े पैमाने पर की जाती है।
Soyabean ki kheti - बुवाई से लेकर कटाई करने तक
भारत में Soyabean ki kheti
सोयाबीन एक फलीदार फसल है। जो भारत में कहीं राज्यों में की जाती है। सोयाबीन की जड़ों में छोटे-छोटे दानेदार गुटी बनी होती है। जिसमें मिट्टी में मिलने वाले पोषण तत्व होते हैं। जिसकी वजह से मिट्टी में नाइट्रोजन की मात्रा कम नहीं होती, अगर सोयाबीन की फसल लेने के बाद हम दूसरी कोई भी फसल लेते हैं। तो उस फसल को बहुत मात्रा में फायदा होता है। क्योंकि जमीन में नाइट्रोजन की मात्रा बहुत होती है। जिसका रिजल्ट हमें आने वाली फसल में दिखता है। सोयाबीन की फसल 100 सेंटीमीटर से 120 सेंटीमीटर तक बढ़ती है।
जमीन का चयन
Soyabean ki kheti के लिए जमीन का चयन करना अति आवश्यक है जहा पानी का अच्छी तरीके से निकास हो, ऐसी जमीन का चयन करें। काली मिट्टी, पीली मिट्टी, दोमट मिट्टी, ऐसे मिट्टी, में सोयाबीन की खेती कर सकते हैं। जहां पानी जमा होकर रहता हो ऐसी जमीन का चयन ना करें।
जमीन का पीएच वैल्यू 6.5 से लेकर 7.5 तक होना चाहिए। सोयाबीन के पौधे के लिए ज्यादा तापमान की भी जरूरत नहीं होती 20 डिग्री से लेकर 30 डिग्री तक तापमान चाहिए।
जमीन कि जुताई
मार्च अप्रैल महीने में जमीन को कल्टीवेटर करके धूप में तपने के लिए छोड़ देनी चाहिए। जब धूप से जमीन तपती है। तो वातावरण में जो नाइट्रोजन फैला हुआ है। वह उस मिट्टी में जाएगा, और जितनी भी नाइट्रोजन कि आवश्यकता है वह जमीन से ही प्राप्त होगा। हमारा युरीया पर जो अतिरिक्त खर्च होता है, वह बच जाएगा। बाद में मिट्टी को रोटावेटर करके जमीन को समतल कर लेना चाहिए। और एक दो बार बखरनी करके जमीन को उल्टा पलट कर लेना चाहिए। तब जाकर हमारी जमीन सोयाबीन खेती के लिए तैयार हो जाएगी।
बीज का चयन
Soyabean ki kheti के लिए बीज का चयन करना अति आवश्यक है। क्योंकि अगर हमारा बीज ही सही नहीं रहेगा तो उत्पादन में वृद्धि नहीं होगी। और हमें घाटा सहना पड़ेगा इसके लिए मार्केट में कहीं तरीके के अच्छे बीज उपलब्ध है। इनमें ऐसी भी वैरायटी आती है जो कम दिनों में पककर तैयार हो जाती है। जैसे-यह वैरायटी 25 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उपज दे सकती है। यह 100 से लेकर 105 दिनों तैयार हो जाती है।
एमएसीएस 1281
यह वैरायटी प्रति हेक्टेयर 25 से 32 क्विंटल उपज दे सकती है। यह 95 से 100 दिन में तैयार हो जाती है।
एमएसीएस 1460
यह वैरायटी 22 से 48 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपज देने के लिए पर्याप्त है। यह 85 से 90 दिन में तैयार हो जाती है।
एमएसीएस 1520
यह वैरायटी 25 से 30 क्विंटल उत्पादन देने की क्षमता रखती है। 100 दिन में तैयार हो जाती है।
केडीएस 344
वैरायटी 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपज देने के लिए पर्याप्त है। यह 110 से 115 दिन में तैयार हो जाती है।
एमएयूएस 158
यह वैरायटी 26 से 32 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपज दे सकती है। यह 95 से 100 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
एमएयूएस 612
यह वैरायटी 32 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपज देने के लिए तैयार है। यह 93 से 98 दिन में तैयार हो जाती है।
एमएयूएस 162
यह वैरायटी 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टर के हिसाब से उपज देने के लिए तैयार है। यह 100 से 103 दिन में तैयार हो जाती है।
केडीएस 726 फूले संगम
यह वैरायटी 25 से 30 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उपजी देती है। और यह 100 से 105 दिन में पककर तैयार हो जाती है।
केडीएस 753 फूले कीमया
यह वैरायटी 25 से 30 क्विटल प्रति हेक्टर के हिसाब से उपज देती है। यह 100 से 105 दिन में तैयार हो जाती है।
एएमएस 1001 वैरायटी
यह वैरायटी 22 से 25 क्विंटल प्रति हेक्टर के हिसाब से उत्पादन देती है। 95 से 100 दिनों में पककर तैयार हो जाती है।
बीज उपचार
किसान भाई जब भी मार्केट से सोयाबीन लाता है। तो उसको बुवाई से पहले अंकुरन क्षमता देखना आवश्यक होता है। इसलिए बैग मे से 100 या 200 दाने निकाल कर किसी कुंडी में या फिर बोरे पर मिट्टी डालकर उगा कर देखना चाहिए। अगर 70% सोयाबीन उग रहा है। तो बुवाई के लिए अच्छा है। उस सोयाबीन का इस्तेमाल प्रति हेक्टर 70 से 75 किलो के हिसाब से करना चाहिए।फुफूंदी और उगवन शक्ति बढ़ाने के लिए 3 ग्राम थायरम प्रति किलो के हिसाब से लगाना चाहिए। या फिर 2.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम का भी इस्तेमाल आप कर सकते हैं। अगर आपके पास यह भी नहीं है, तो 1.5 ग्राम थायरम+ 1.5 ग्राम कार्बेन्डाजिम लगा सकते हैं।
बीज दर
किसान भाई को यह समझना चाहिए आज मार्केट में जो रेट चल रहा है। वह हमारे सोयाबीन से कई गुना ज्यादा है। ऐसे में किसान भाई सोयाबीन की बैग खरीद नहीं पाते हैं। और जो 1400, 1500 में सरकार की तरफ से सब्सिडी की तौर पर सोयाबीन की बैग मिलती है। उससे ज्यादा पैदावार नहीं होती, इसलिए पिछले साल का जो भी हमारे खेत से निकला हुआ सोयाबीन है। उसे ही धूप में अच्छे से सुखा ले जब तक उसके ऊपर की पपड़ी फट न जाए तब तक उसको सुखाइये। बाद में उस सोयाबीन को अच्छे बाग में भरकर स्टोर करके रख दीजिए। जब बुवाई का समय आएगा तो हम उस पर बीज उपचार करके उसकी उगवन शक्ति बढ़ाकर इसका इस्तेमाल कर सकते हैं। ऐसा करने से हमारे किसान भाई की पैसे कि बचत हो सकती हैं। और मार्केट के लोगों को सबक मिल सकता है। बीज उपचार करने के लिए हमें प्रोडक्ट मिलता है जिसका नाम है झेलोरा इसमें Thiophanate Methyl 450 g/l + Pyraclostrobin 50 g/l यह उसका केमिकल नेम है इसका इस्तेमाल आप उगवन शक्ति बढ़ाने के लिए कर सकते हैं। यह प्रोडक्ट बीएसएफ का है। अगर हम बाजार में सोयाबीन का बीज खरीदने जाते हैं। तो 27 किलो कि बॅग ₹3400, ₹3500, 4000 तक उनके दाम है। इसलिए हमारे ही खेत का सोयाबीन लेकर उसका इस्तेमाल करना ठीक रहता है। अगर आपके पास पैसे है। तो आप मार्केट से भी ले सकते हैं। पर जो गरीब किसान भाई है उनको यह उपचार करना चाहिए।बुवाई का समय
खरीफ हंगाम में अच्छी बारिश होने के बाद जमीन में 8 से 10 इंच तक पानी जाना चाहिए। तब जाकर हम सोयाबीन की बुवाई कर सकते हैं। 15 जून से लेकर 15 जुलाई तक का समय सोयाबीन की बुवाई के लिए अच्छा माना गया है। अगर हम इसके बाद सोयाबीन की बुवाई करते हैं। तो हमारे उत्पादन में घट आ सकती है। इसलिए सही समय पर बुवाई करना अत्यंत आवश्यक है।सोयाबीन कि बुवाई
सोयाबीन की बुवाई बेड पर भी कर सकते हैं। या फिर सारा पद्धति पर भी कर सकते हैं। जब हम सारा पद्धति पर बुवाई कर रहे हैं। तो दोनों लाइन में गैप 30 से 45 सेंटीमीटर का होना चाहिए। और दो पौधे का अंतर 5 से 7 सेंटीमीटर होना चाहिए। और हमारा बीज जमीन के अंदर 2.5 सेंटीमीटर से लेकर 3 सेंटीमीटर तक जाना चाहिए। इसके लिए एक हेक्टर में 70 से 75 किलो सोयाबीन की लगेगा। एक हेक्टर में तकरीबन 4.50 लाख पौधे की संख्या हो जाएगी।अगर बेड की हाइट 1.5 से लेकर 2 फुट पर है। तो उसे बेड पर 5 से 10 सेंटीमीटर पर सोयाबीन की बुवाई करनी चाहिए। इस पद्धति में प्रति हेक्टर 35 से 40 किलो सोयाबीन की जरूरत होती है। और तापमान, परिस्थिति अनुकूल रही तो 30 से 35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर के हिसाब से उत्पादन निश्चित होता है। इसलिए यह पद्धति बहुत अच्छी मानी गई है।
बेड पर बुवाई के फायदे
सोयाबीन की बुवाई बेड पर होती है, तो ज्यादा भी बारिश हो गई तो पानी बेड के नीचे उतरकर नाली में से निकल जाता है। और हमारे फसल को बर्बाद होने से बचाता है। और कम बारिश हुई तो उस बेड नमी बनाए रखने का काम करता है। इसलिए इस पद्धत को अपनाना चाहिए।अंतरर्वतीय फसल
किसान भाई अंतरर्वतीय फसल के रूप में सोयाबीन के साथ अरहर भी ले सकते हैं। ज्वार सोयाबीन, तील सोयाबीन, मक्का सोयाबीन, यह फसल ले सकते हैं।फसल चक्र
आप कपास के बाद सोयाबीन की फसल ले सकते हैं। ज्वार के बाद सोयाबीन ले सकते हैं।उर्वरक कि मात्रा
सोयाबीन की बुवाई के समय प्रति हेक्टर 20 किलो नत्र, 70 से 80 किलो स्फुरद, 20 किलो पालाश और 30 किलो गंधक दे सकते हैं। इसी प्रकार से 25 किलो झिंक सल्फेट, 10 किलो बोरेक्स, मैग्निशियम, कैलशियम,बोरान, लोह, जस्त, मैंगनीज इन सब माइक्रोन्यूट्रिएंट्स की भी जरूरत होती है। जब फसल पर इसका असर दिखने लगे तो इसका छिड़काव करना आवश्यक हो जाता हैकिट
सोयाबीन पर लगने वाले कीट की वजह से हमारे पैदावार में 5 से 50% तक कमी आ सकती है। इसलिए इन कीटों का बंदोबस्त करना अनिवार्य हो जाता है। सोयाबीन को नुकसान पहुंचाने वाला नीलाभृंग (ब्लूबिटल) पत्ते खाने वाली इल्लीया, गर्डल बीटल,तने को नुकसान पहुंचाने वाली मक्खी इन सभी का फसल पर आक्रमण होता है। इसलिए उचित उपाय करना आवश्यक है।सिंचाई
सोयाबीन की फसल खरीफ में ली जाती है। इसके कारण सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है।पर फलियां में दाना भरते समय पानी की बहुत मांग होती है। उस समय अगर बारिश नहीं होती है।या फिर जमीन में पर्याप्त नमी नहीं होती है। तो हमें स्प्रिंकलर की मदद से पानी की हल्की सिंचाई कर देनी चाहिए। इससे हमारे फलियां में दाना अच्छे से भरता है। और उत्पादन में वृद्धि होती है।खरपतवार प्रबंधन
खरपतवार हमारे खेती को नष्ट कर देता है। इसलिए इसका प्रबंध करना अति आवश्यक हो जाता है।
खरपतवार कि वजह से पैदावार में कमी होती है। परिणाम स्वरूप हमारी खेती घाटे में चली जाती है। लाखों रुपए का नुकसान हो जाता है। उसके लिए खरपतवार को जल्द से जल्द नियंत्रण में लाना अति आवश्यक हो जाता है। इसके लिए हमें खरपतवार नाशक का इस्तेमाल करना चाहिए। या फिर निराई गुड़ाई करनी चाहिए। हम निराई गुड़ाई करेंगे तो हमें ज्यादा खर्चा आएगा। इसलिए हम खरपतवार नाशक का छिड़काव करेंगे। वह कौन से प्रभावित खरपतवार नाशक है वह हम आपको बताएंगे।
अगर हम सोयाबीन बुवाई से पहले खुले खेत में आर्मस्ट्रांग/ स्टाॅम्प की छिड़काव करें तो आने वाले 40 दिन तक खरपतवार नहीं उगेगा।
अगर हमारी फसल 20 से 30 दिन की हो गई है और फसल के साथ-साथ खरपतवार भी निकल आ रहा है तो हमें ओडीसी, टरगा सुपर, परस्युट का इस्तेमाल करना चाहिए। इसका छिड़काव करेंगे तो खरपतवार जगह पर ही मर जाएगा।
किटकनाशक एवं प्रबंधन
सोयाबीन की फसल पर कीटनाशक का इस्तेमाल करना आवश्यक हो जाता है। क्योंकि फसल को बर्बाद करने के लिए बहुत तरह की किट सोयाबीन पर दिखने लगते हैं। ज्यादा मात्रा में पत्ते खाने वाली इल्ली का पादुर्भाव होता है। इसलिए इसके रोकथाम के लिए Emamectine Benzoate 5% SG के फॉर्म में आता है इसे 10 ग्राम प्रति पंप के हिसाब से सोयाबीन पर छिड़काव करना चाहिए। और तना छेदक ईल्ली का पादुर्भाव अगर दिख रहा है, तो हमें डुपांन्ट कोराजन का छिड़काव करना चाहिए। इसके साथ-साथ फफूंद नाशक का भी इस्तेमाल करना चाहिए जिनका प्रोडक्ट के नाम है सुदर्शन, बाविस्टीन जिसका केमिकल नाम है Thiophanate methyl 70% WPबखरनी
सोयाबीन की फसल में जब खरपतवार उगने लगती है। और खरपतवार नाशक का भी असर नहीं दिखता है। तो हमें बखरनी कर लेनी चाहिए। इसकी मदद से पूरी खरपतवार निकल जाती है। और सोयाबीन के जड़ों को हवा लगने लगती है, तो सोयाबीन की जड़े कार्यक्षम हो जाती है। ऐसा करने से हमारे फसल में सुधार आता है। और उत्पादन में वृद्धि होने के चांसेस बढ़ जाते हैं।इसलिए बखरनी करना आवश्यक है।फसल कटाई
फसल पकने के बाद जल्दी से कटाई कर लेनी चाहिए। नहीं तो धूप की वजह से सोयाबीन के दाने फटने लगते हैं। और पूरे खेत में बिखर जाते हैं। इसकी वजह से उत्पादन में घट हो जाती है। इसलिए जब भी हमारी फसल पक कर तैयार हो जाती है। तो जल्दी से जल्दी उसकी कटाई करना आवश्यक है। इसके लिए हम मजदूर की मदद ले सकते हैं। या फिर हम हार्वेस्टर की मदद से भी डायरेक्ट निकाल सकते हैं।फसल का भण्डारण
जब किसान भाई फसल की कटाई करता है। तो उसे एक अच्छी जगह पर रखना आवश्यक होता है। क्योंकि बारिश का मौसम होता है, तो जहां पानी नहीं पहुंच सकता हो उस जगह पर हमें रखना चाहिए।मशीन द्वारा निकालना
हमें दो तरह की मशीनों से सोयाबीन को निकालना आता है। एक है हार्वेस्टर की मदद से या फिर दूसरी हिडिंबा मशीन से निकलना होता है। अगर हम हार्वेस्टर की मदद से सोयाबीन निकाल रहे हैं। तो दाना फटने की चांसेस बहुत ज्यादा होते हैं। और दाने में चकाकी की नहीं रहती हैं। उसका पीलापन धुंधला हो जाता है। और हमें अच्छा भाव नहीं मिल पाता है। इसके अलावा अगर हम हिडिंबा मशीन से सोयाबीन निकालते हैं। तो उसकी चकाकी अच्छी रहती है। और दाना भी नहीं फटता है। इसलिए हमें छोटे मशीनों से ही सोयाबीन निकालना चाहिए।सोयाबीन कि उपज
सोयाबीन की खेती में तापमान और खत व्यवस्थापन तथा निराई गुड़ाई यह सब अच्छे से हुआ है। और मौसम ने भी साथ दी है। तो हमारे उत्पादन में बहुत वृद्धि होगी। प्रति हेक्टर 25 से 30 क्विंटल उत्पाद हो सकता है।निष्कर्ष
किसान भाई सोयाबीन की खेती, दी गई जानकारी के अनुसार करते हैं। तो निश्चित ही प्रति एकड़ 10 से 12 क्विंटल सोयाबीन का उत्पादन ले सकते हैं। क्योंकि हम भी इसी तरह की खेती करके इतना उत्पादन निकाल रहे हैं।FAQs
Que 1.सोयाबीन कौन से महीने में बोया जाता है?Ans - 15 जून से लेकर 15 जुलाई तक का समय सोयाबीन बुवाई के लिए अच्छा माना गया है
Que 2 सोयाबीन की 1 एकड़ में कितनी पैदावार होती है?
Ans सोयाबीन की एक एकड़ में पैदावार 12 से 15 क्विंटल होती है
Que 3.सोयाबीन कितने दिन में तैयार हो जाती है?
Ans सोयाबीन 90 दिन से 105 दिन में तैयार हो जाती है।
Que 4. सोयाबीन बीज का रेट क्या है?
Ans सोयाबीन बीज का रेट 105 रुपए प्रति किलो से 150 रुपए प्रति किलो के दर से मिलता है।
Que 5. सोयाबीन किस मिट्टी में उगाया जाता है?
Ans सोयाबीन काली मिट्टी, पीली मिट्टी, दोमट मिट्टी और जीस मिट्टी का पीएच 6.5 से लेकर 7.5 तक है। उस मिट्टी में हम सोयाबीन की फसल ले सकते हैं।
Que 6. सोयाबीन में कौन सा खाद देना चाहिए?
Ans सोयाबीन में बुवाई से पहले सड़ी हुई गोबर की खाद डाल देनी चाहिए। और रासायनिक खाद की बात करें तो 20-20-0-13 यह खाद उपयुक्त है।
Que 7. भारत में सोयाबीन उत्पादन में प्रथम राज्य कौन सा है?
Ans भारत में सोयाबीन उत्पादन में महाराष्ट्र सबसे प्रथम स्थान पर है। पर मध्य प्रदेश सोयाबीन के लिए प्रमुख राज्य माना जाता है। इसके अलावा राजस्थान में भी सोयाबीन की खेती की जाती है।
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